आज कथा का अंत यहीं / कुमार रवींद्र

आज
 
 
 

 
 
कथा का
अंत यहीं होता है, साधो

कल फिर यहीं समाज जुड़ेगा
नई कथा होगी
किसिम-किसिम के लोग जुटेंगे
ठग-दम्भी-जोगी

हर दिन
अपनी अंतिम साँसें
यहीं, सुनो, बोता है, साधो

कुछ लाएँगे जोत दिये की
कुछ अँधियारे भी
मीठे जल के कलश लायेंगे
कुछ जल खारे भी
 
कोई कथा
ध्यान से सुनता
कोई सुन सोता है, साधो
 
आज कथा में बाँचा हमने
मानुष असुर हुए
सभागार में कब-कब
अनरथकारी हुए जुए
 
यह भी जाना
कब ऋषिकुल
अपना आपा खोता है, साधो

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