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आज कितनी वासनामय यामिनी है / हरिवंशराय बच्चन

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आज कितनी वासनामय यामिनी है!

दिन गया तो ले गया बातें पुरानी,
याद मुझको अब भी नहीं रातें पुरानी,
आज भी पहली निशा मनभावनी है;
आज कितनी वासनामय यामिनी है!

घूँट मधु का है, नहीं झोंका पवन का,
कुछ नहीं आज मन को पाता है आज तन का,
रात मेरे स्‍वप्‍न की अनुगामिनी है;
आज कितनी वासनामय यामिनी है!

यह काली का हास आता है किधर से,
यह कुसुम का श्‍वास जाता है किधर से,
हर लता-तरु में प्रणय की रागिनी है;
आज कितनी वासनामय यामिनी है!

दुग्‍ध-उज्‍जवल मोतियों से युक्‍त चादा,
जो बिछी नभ के पलँग पर आज उसपर
चाँद से लिपटी लजाती चाँदनी है;
आज कितनी वासनामय यामिनी है!