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आतप आकुल मृदुल कुसुम कुल / सुमित्रानंदन पंत

आतप आकुल मृदुल कुसुम कुल
हरने मर्म तृषा निज, प्राण
ऊपर उठकर हृदय पात्र भर
करता स्वर्ग सुधा का पान!
तू भी जग कर अमर सुरा भर
सुज्ञ सुमन बन हे अनजान,
उसी फूल-से सभी धूल से
उपजे हम बालक नादान!
एक प्रात द्रुत हमें वृंतच्युत
करके निर्मम नभ तत्काल
शून्य पात्र सा गात्र मात्र यह
फूल, धूल में देगा डाल!