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आत्म विश्वास / राजीव रंजन
Kavita Kosh से
जाम में फँसे सड़क के एक मोड़ पर
एक औरत जो स्कूटी से आ
मेरे बराबर खड़ी हुई।
पहली बार साड़ी से बाहर
निकल आत्मविश्वास से
लबरेज एक पाँव को
इतनी मजबूती से धरती
पर जमते देखा था।
मैंने अपनी बाईक पीछे
करते हुए स्त्री के सम्मान
में उसे आगे निकलने का
इशारा किया, इस सम्मान
के पीछे हीनता के जो
भाव छिपे थे, शायद
उसे उसकी तीक्ष्ण नजरों
ने परख लिया था।
उसने तुरंत अपनी स्कूटी
पीछे कर मुझे आगे
निकलने का इशारा किया,
पुरूश के प्रति उसके
इस सम्मान में बहुत
स्पश्ट एवं खुले तौर
से उसके चेहरे एवं
उसकी आँखों से आत्मविश्वास
और गर्व झलक रहा था।