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आदमी / कुँअर रवीन्द्र
Kavita Kosh से
आजकल मैं
एक ही बिम्ब में
सब कुछ देखता हूँ
एक ही बिम्ब में ऊंट और पहाड़ को
समुद्र और तालाब को
मगर आदमी
मेरे बिम्बों से बाहर छिटक जाता है
पता नहीं क्यों
आदमी बिम्ब में समा नहीं पता है ?