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आदमी / जनकवि भोला
Kavita Kosh से
मैं आदमी हूं
भर दिन मेहनत करता हूं
देखने मेें जिंदा लाश हूं
लेकिन.....
मैं लाश नहीं हूं
मैं हूं दुनिया का भाग्य विधाता
जिसके कंधों पर टिकी हैं
दैत्याकार मशीन
खदान, खेत, खलिहान
जी हां, मैं वहीं आदमी हूं
जिसके बूते चलती है
ये सारी दुनिया
जिसे बूते बैठे हैं
ऊंची कुर्सी पर
कुछ लोग
जो पहचानते नहीं
इस आदमी को
समझते नहीं
इस आदमी को
नहीं, नहीं,
ऐसा हरगिज नहीं
मैं होने दूंगा
अपनी पहचान मिटने नहीं दूंगा
क्योंकि
मैं आदमी हूं
हां, हां,
मैं वही आदमी हूं।