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आदमी की सुगंध / नवल शुक्ल
Kavita Kosh से
यह जो उथल-पुथल हो रही है
बाज़ार को छूट दी जा रही है
कम किए जा रहे हैं आग्नेयास्त्र
शान्ति के शब्द बोले जा रहे हैं
वह सांत्वना है सिर्फ़
थोड़े समय की राहत
बहुत अधिक दिखावट।
इस समय सबसे अधिक
बदहाल है दुनिया
सबसे अधिक खाली है पेट।
तमाम उन्नत तकनीक
और विश्व की विकास रपटों के
ये अभी भी, एक ही पल में
धूल, धुएँ और विकिरण से भर देंगे पृथ्वी
पृथ्वी अभी भी खाली है जल से
हरियाली से, अन्न से
आदमी की सुगन्ध से।