नफ़रत का भाव ज्यों ज्यों खोता चला गया
मैं रफ़्ता रफ़्ता आदमी होता चला गया ।
फिर हो गया मै प्यार की गंगा से तरबतर
गुज़रा जिधर से सबको भिगोता चला गया ।
सोचा हमेशा मुझसे किसी का बुरा न हो
नेकी हुई दरिया में डुबोता चला गया ।
कटुता की सुई लेके खड़े थे जो मेरे मीत
सद्भावना के फूल पिरोता चला गया ।
जितना सुना था उतना ज़माना बुरा नहीं
विश्वास अपने आप पर होता चला गया ।
अपने से ही बनती है बिगड़ती है ये दुनिया
मैं अपने मन के मैल को धोता चला गया ।
उपजाऊ दिल हैं बेहद मेरे शहर के लोग
हर दिल में बीज प्यार के बोता चला गया ।