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आदर्श / निदा नवाज़
Kavita Kosh से
मेरे शहर में
आना हो तो
अपनी आँखें निकालकर
सिगरेट-बिट की तरह
पांव-तले मसल दो।
आदर्शों के सारे पन्ने
सूखी लकड़ी की तरह
जला दो।
क़लम की जीभ
किसी सिरफिरे के सिर की तरह
काट दो।
कि अब यहाँ
देखना,सोचना
और लिखना है पाप।