आदान-प्रदान / शोभना 'श्याम'
शहर की लड़की
चुराती है जी घरेलू काम से
करती है जिम में 'वर्क-आउट'
गाँव की लड़की
सुबह से साँझ ढले तक
करती है चौका, चूल्हा, बासन, कटका
आँगन की मिट्टी के साथ
बुहार देती है शरीर से एकस्ट्रा कैलरी
शहरी लड़की पढ़ और फारवर्ड कर
डिलीट कर देती है एस.एम.एस.
गाँव की जब उखाड़ रही होती है
खेत से खरपतवार
एक के कंधे पर झूलता है
वर्साचे का बैग
समेटे हुए कॉस्मेटिक्स, फेस वाश, कॉम्ब
कभी-कभी शेल्फ़ से लेटेस्ट नॉवल
दूसरी की पीठ पर बँधा है झोला
जिसमें लटका है कोई
दुधमुँहा भाई या बहन
गाँव की लड़की बुनती है स्वेटर
फंदों में जैसे बाँध रही हो रिश्ते
शहर की बुनती है करियर
जिसके फंदे में उलझ कभी-कभी
दम तोड़ देते हैं रिश्ते
गाँव की बाला जब लाती है
पनघट से पानी
शहर की ले आती हैं
एक और डिग्री
वह करती है बिजनेस मैनेजमेंट
पर कर जाती है कभी-कभी
घर में मिस-मैनेजमेंट
गाँव की जब हँसती है
तो अजाने ही चला जाता है
मुँह पर हाथ मानो
लग न जाये किसी की नज़्ार
शहर की हँसती है
बेबाक और बेलौस
ओ शहर की बाला
जब करने जाओ तुम
गाँव में फोटोग़ाफी
मिल लेना अपने गँवई प्रतिरूप से
सीख लेना कुछ गुर गृहस्थी के
बदले में याद से दे आना उसे
अपनी उन्मुक्त हँसी।