लोहे के पँजे से वो रेत भर रही है तगाड़ी में
हाथों की चूड़ी
याद दिला रही है भगोरिया की
भूख उसे झाबुआ के जंगल और
उसकी बस्ती से बहुत दूर ले आई
सुबह से शाम तक रेत, सीमेण्ट ढोती है
कुछ देर रुके तो ठेकेदार दिहाड़ी काटने का कहता है
छुप कर हथेली पर तम्बाकू मलती है
और फिर काम करने लगती है
उसके सपनों में
रोज़ आता है
भगोरिया का मेला