हर आने के साथ
जाना जुड़ा होता है।
आना चुपके से होता है,
उसकी भनक नहीं मिलती,
फिर अचानक एक दिन
आने का पता चलता है।
इसी तरह जाने से पहले ही
जाना हो चुका होता है —
अचानक एक दिन
जाने का पता चलता है।
आना और जाना
बिना आहट के होता है,
अहसास सिर्फ़ होता है
कुछ भर जाने का —
कुछ खाली हो जाने का —