आपकी वह नज़र चाहिए।
हर ग़ज़ल को बहर चाहिए।।
कर सके जो अमल हर घड़ी।
स्वर मधुर हर पहर चाहिए।।
बह सके जो निरन्तर यहाँ।
उस नदी को लहर चाहिए।।
प्यार करते हो तुम गर उसे।
जिस्म पर ना नज़र चाहिए।।
दाल गलती नहीं आंच से।
ताप कुछ इस कदर चाहिए।।
दुल्हनें भी भली वह लगे।
थोड़ी पतली कमर चाहिए।।