भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आपस में मक्कारी थी / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
आपस में मक्कारी थी
लौट आया लाचारी थी
मैंने समझा यारी थी
अब समझा गद्दारी थी
दुनिया से मतलब न था
ऐसी दुनियादारी थी
हत्यारे थे जुटे हुए
संसद लगी बेचारी थी
पूरी बस्ती जला गई
ऐसी वह चिंगारी थी
इतने क्यों गुमसुम थे तुम
चलने की तैयारी थी
अमरेन्दर तक मार खा गया
ऐसी मारा-मारी थी।