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आमंत्रण / शैलप्रिया
Kavita Kosh से
आओ, हम फिर शुरू करें
आजादी का गीत
कि खुले कण्ठ से स्वरों को सांचा दें
कि हमारी आकांक्षाएं
पेड़ों के तले
मगर पिंजरे में कैद
पंछी बन गयी हैं
आकाश के उन्मुक्त फैलाव से
उनके रिश्ते कट गये हैं
आओ हम फिर शुरू करें
आजादी का गीत
कि हमारी चोंच पर पहरा है
बहेलिए के जाल का
आओ हम बंधक पंखों को झटक कर
मोर की तरह नाचें
अपने कोटरों से बाहर आएं
डर के पंजों से मुक्त होकर गाएं
दुख-सुख को मिलजुल कर बांटें
दमघोंटू धुआं काटें
आओ हम फिर शुरू करें
आजादी का गीत!