Last modified on 9 अप्रैल 2014, at 16:15

आमद आमद हुई घटाओं की / देवी नांगरानी

आमद आमद हुई घटाओं की
ठंडक अच्छी लगी हवाओं की

लोग निकले हैं सुर्ख़रू होकर
सर पे जिनके दुआ है मांओं की

डर से पीले हुए सभी पत्ते
आहटें जब सुनी ख़िज़ाओं की

बेगुनाही तो मेरी साबित है
फिर सज़ाएँ हैं किन ख़ताओं की

कहके ‘देवी’ मुझे पुकारा है
गूँज अब तक है उन सदाओं की