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आमने-सामने / महेन्द्र भटनागर

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जी भर
आज बोलेंगे,
परस्पर अंक में आबद्ध
सारी रात बोलेंगे,
जी भर
बात बालेंगे !

विश्वास की
सम-भूमि पर हम
एक-धर्मा
हीनता की ग्रंथियाँ
संदेह के निर्मोक खोलेंगे,
सहज निर्व्याज खोलेंगे !

जी भर
आज जी लेंगे,
सुधा के पात्र पी लंेगे !