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आशा / कमलकांत सक्सेना
Kavita Kosh से
आँखों ही आँखों में हो जायें बातें
सपनों ही सपनों में खो जाये रातें
तो, सुधियों को सच्चा प्राण मिले!
यौवन तो यौवन होता है
नहीं किसी का ऋण होता है
मनमानी की यही उम्र है
यही नेह दर्पण होता है।
खेल खेल में आओ आधार बना लें
साथ साथ रहने को संसार बसा लें
तो, जीवन को मन का ग्राम मिले!
दो तट बीच नदी होती है
अपनी लाज नहीं खोती है
घाट घाट की मिट्टी ढोकर
अमृतमय गंगा होती है।
तूफानों से निर्भय हो दर्द गलायें
मझधारों में हंसकर पतवार चलायें
तो, नौका को मंजिल धाम मिले!
वीणा तो साधक होती है,
साधक का पूजन होती है
कवितामय सरगम लहराकर
तार तार गुंजन होती है।
अगर अभावों को मधु संगीत बना लें
गरल पचाकर हर क्षण को गीत बना लें
तो, छंदों को 'आशा' नाम मिले!