भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आशा की वंशी / रामधारी सिंह "दिनकर"

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लिख रहे गीत इस अंधकार में भी तुम
रवि से काले बरछे जब बरस रहे हैं,
सरिताएँ जम कर बर्फ हुई जाती हैं,
जब बहुत लोग पानी को तरस रहे हैं?

इन गीतों से यह तिमिर-जाल टूटेगा?
यह जमी हुई सरिता फिर धार धरेगी?
बरसेगा शीतल मेघ? लोग भीगेंगे?
यह मरी हुई हरियाली नहीं मरेगी?

तो लिखो, और मुझ में भी जो आशा है,
उसको अपने गीतों में कहीं सजा दो।
ज्योतियाँ अभी इसके भीतर बाकी हैं,
लो, अंधकार में यह बाँसुरी बजा दो।

रचनाकाल १९५४ ई०