भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आसाढ / सांवर दइया
Kavita Kosh से
खीरा उछालतो आयो असाढ !
लूवां री गांठड़ी लायो असाढ !
धोरां-धोरां बादळियां लारै,
भटकतो फिरै तिरसायो असाढ !
ताम्बै वरणी हुयगी चामड़ी,
बस पसेवो ई कमायो असाढ !
सांय-सांय, सांय-सांय, सांय-सांय,
सड़कां माथै तरणायो असाढ !
रमता दीसै कोनी टाबरिया,
गळी-गळी फूंफायो असाढ !