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आ मेरी आंखों की पुतली / माखनलाल चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
आ मेरी आंखों की पुतली,
आ मेरे जी की धड़कन,
आ मेरे वृन्दावन के धन,
आ ब्रज-जीवन मन मोहन!
आ मेरे धन, धन के बंधन,
आ मेरे तन, जन की आह!
आ मेरे तन, तन के पोषण,
आ मेरे मन-मन की चाह!
केकी को केका, कोकिल को-
कूज गूँज अलि को सिखला!
वनमाली, हँस दे हरियाली
वह मतवाली छवि दिखला!