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इंतहा आज इश्क़ की कर दी / पयाम सईदी

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इंतहा आज इश्क़ की कर दी
आपके नाम ज़िन्दगी कर दी

था अँधेरा ग़रीब ख़ाने में
आपने आ के रौशनी कर दी

देने वाले ने उनको हुस्न दिया
और अता मुझको आशिक़ी कर दी

तुमने ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे बिखरा कर
शाम रंगीन और भी कर दी