भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इंसां को इंसां से... / उत्‍तमराव क्षीरसागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


इंसां को इंसां से बैर नहीं है
फि‍र भी इंसां की ख़ैर नहीं है

ये क़ाति‍ल जुल्‍मी औ' डाकू लुटेरे
अपने ही हैं सब ग़ैर नहीं हैं

अच्‍छाई की राहें हैं हज़ारों
उन पर चलने वाले पैर नहीं हैं

दूर बहुत दूर होती हैं मंजि‍लें अक्‍सर
लंबा सफ़र है यह कोई सैर नहीं है