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इच्छुक / अम्बर रंजना पाण्डेय
Kavita Kosh से
इच्छा का विभुवन औंधा है ।
भोगायतन दीवट की भाँति
जर्जर होता गया पर ज्योत
इच्छा की जगमग रहती है ।
दीवट घोड़े की लीद छबा ।
दीपक भी है टूटाफूटा,
कज्जल से कालू । बाती ली
माढ़ फटी कछनी के सूतों
से फिर भी उजियाला जगमग,
जागरित, जी जोड़नेवाला
ही होता है । इच्छा के इस
सन्दीप का उजेला है यह
जगत । बुढ़ाती देह कामना
वैसी ही है ताज़ा-तरुणी
आखेट की फ़िराक में तरुण-
ताज़ा की । अन्धेर भले हो
बाहर, भीतर दीवट जर्जर ।
उज्जवल है तब भी कामना
का कोना ।