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इज़्ज़तपुरम्-30 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
रोटी का
दाब कम न था
कि जिस्म पर
लद गया
कपड़ो का भार भी
काश
सम्पूर्ण दुनिया
नग्न होती
तब
न नग्नता होती
न अश्लीलता