बहार आएगी
तो क्या कुछ नहीं होगा नया
इतना तो होगा ही कि
फूलों की नई फ़स्ल में
मैं-कहीं छिपा हूंगा
तुम्हीं को देखता
कसमसाती कोंपलों की उठानों में
तुम-
कहीं होगी
छिपती छिपाती
क्या ये कुछ नहीं होगा
नया!?