इतना मंच मुझे दे देना / बुलाकी दास बावरा
इतना मंच मुझे दे देना, मैं किंचित अभिनय कर पाऊँ ।
तोड़ समुचे बंधन-क्रन्दन, केवल तुम में लय हो जाऊँ ।।
भटकावों के घेरों से लड़, मेरी उमरिया सधती आई,
क्रूर प्रपंचों-व्याघातों से, मेरी हरदम रही लड़ाई,
कितने ही बवाल उठे पर, मेरी सांसें डिगी नहीं
इतना क्षितिज मुझे दे देना, अपना मर्म उदय कर पाऊँ ।
इतना मंच मुझे दे देना, मैं किंचित अभिनय कर पाऊँ ।।
जब जब भी बाहर को झांका, अपनों ने दे दिया भुलावा,
इच्छाओं के गुणा भाग में, मुझको केवल मिला छलावा,
गत-विगत की विडम्बना के, स्वर अभी मानस पर मंडित,
इतना धैर्य मुझे दे देना, अपना अहम् निलय कर पाऊँ ।
इतना मंच मुझे दे देना, मैं किंचित अभिनय कर पाऊँ ।।
सांसों का व्यापार काल की, कील सदा करती आई है,
किन्तु सृजन की रेखाएं भी नूतन लेख, लिखे आई है,
मुझको प्रिय आलम्ब वही, कि जिस पर धरती टिकी हुई है,
इतनी सीख मुझे दे देना, अपना मार्ग अभय कर पाऊँ ।
इतना मंच मुझे दे देना, मैं किंचित अभिनय कर पाऊँ ।।