भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इनरा मरि गइल / केशव मोहन पाण्डेय
Kavita Kosh से
कहीं होत होई नादानी
बाकिर
हमरा गाँवे तऽ
इनरा के पानी
सभे पीये
सबके असरा पुरावे इनरा
तबो मरि गइल
ईऽ परमार्थ के पुरस्कार
काऽ भइल?
समय के साथे
लोग हुँसियार हो गइल
इनरा के पानी
बेमारी के घर लागे लागल
लोग रोग-निरोग के बारे में
जागे लागल।
लोग जागे लागल
आ इनरा भराए लागल
लइका-सेयान
सभे कुछ-कुछ रोज डाले
इनरा के सफाई के बात
सभे टाले,
अब इनरा के साँस अफनाए लागल
लोग ताली बजावे लागल
कि अब केहू बेमार ना होई।
आज हाहाकार बा पानी खातिर
बात बुझाता अब
कि आम कहाँ से मिली
जब रास्ता रुन्हे खातिर
लोग बबूल बोई।