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इन्तजार / अर्चना कुमारी
Kavita Kosh से
आसमान की तरफ नजर उठाओ
तो जेहन खन खन बजता है
घनघनाती है बेसुरी सांसे
लफ्ज नहीं बुदबुदाते
मोड़कर पलकें
जमीं की ओर
लौट आती हैं आंखें
इंतजार अंतहीन हुआ करता है।