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इयां कियां / राजूराम बिजारणियां
Kavita Kosh से
हथैळ्यां में थाम
मुळकतो-खिंडतो
सांचै ढळ्यो
गोरो-गट
मुखड़ो
बै बोल्या-
‘‘चांद म्हारै हाथां में.!’’
चांद.!
सैंतरो-बैंतरो
पंपोळै थोबड़
मन में गिरगिराट..
‘‘इयां कियां..?’’