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इश्तहार कर दिया है/रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
वहशी दरिंदों ने जीना दुश्वार कर दिया है,
कच्ची कलियों का खिलना ख़्वाब कर दिया है।
बलात्कार-कत्ल का ऐसा चढ़ा जुनून,
पाक जगहों को भी नापाक कर दिया है।
अब तक भी कैद है वह दुनिया की कारा में,
फिर भी कहते हैं उसे आज़ाद कर दिया है।
शोषण के नए रास्ते हरपल ईज़ाद कर रहे,
बाजार में वह बिक रही सामान कर दिया है।
दुनिया का कारोबार उससे ही चल रहा,
व्यापार का उसे इश्तहार कर दिया है।
होटल,क्लब,बार उसकी थिरकन में झूमते हैं,
तन-मन उसका लूटकर कंगाल कर दिया है।
नग्न तन से यहाँ पर नाचती हैं तारिकाएँ,
स्त्री की अस्मिता पर इक बड़ा सवाल कर दिया है।