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इसलिए उगता है पेड़ / विनोद शाही
Kavita Kosh से
डाल से उड़ जाने के बाद भी
बचा रह जाता है पक्षी
पेड़ में धड़कन की तरह
पूरा पढ़ लेने के बाद भी
पढ़ना होता रहता है
भाषा की धड़कन की तरह
आप चाहें तो इसे
कविता भी कह सकते हैं
डाल पर खिले फूल की सुगन्ध
हवा में तैरती है
पक्षी की स्मृति की तरह
पढ़ी ही नहीं
फिर से लिखी भी जाती है कविता
और पाठक के भीतर से
एक कवि की सुगन्ध आने लगती है
कवि होते ही
पाठक को लगता है
कि वह भी हमेशा से एक कवि था
लगता है पेड़ को
कि वह इसलिए उगा
कि उसके भीतर पनप सके
एक पक्षी की आत्मा