इस तरफ से होना / मनोज कुमार झा
इसी धरती पर वह भी हिस्सा है, वह भी कोण
जहाँ से देखो तो लगता है कि फटी ज्वालामुखी और हुए सरसों के फूल !
यहाँ से होने में तो पहले होते हैं सरसों के चुनमुनिया पौधे
वो न हुए पौधे भी जिनका होना छुप गया हो गए दूब से
यहाँ से देखो तो पहले दिखे सरसों के पत्ते
वे न हुए पत्ते भी बीछ लिए गए जिनके पौधे
मह-मह हो रहे है चावल के रोटी के कौर
हो रहे हैं स्वाद दिलफरेब इबारतों को छका
फाव में मिली हरी मिर्च से
हो रही बच्चों की खुशी छीमियों के झन-झन से
जो असह्य शोर के बीच सुंदर ध्वनियों के
बच्चों तक हो रहे रास्ते हैं।
हो रहा कहीं नमक के साथ दो ठोप तो कहीं सिलबट्टे पर एक मुट्ठी
कहीं बुद्ध के हाथों मृत्यु का चेहरा
तो कहीं माँ के हाथों नौनिहाल की पीठ
मात्र क्षण भर फूल नहीं
इधर से होने में क्या-क्या नहीं होता सरसों!