भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस बाँट परी सुधि / घनानंद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इन बाट परी सुधि रावरे भूलनि,
कैसे उराहनौ दीजिए जू.
इक आस तिहारी सों जीजै सदा,
घन चातक की गति लीजिए जू.
अब तौ सब सीस चढाये लई,
जु कछु मन भाई सो कीजिये जू.
‘घनआनन्द’ जीवन -प्रान सुजान,
तिहारिये बातनि जीजिये जू.