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ईश्वर कितना एकाकी / नवीन रांगियाल
Kavita Kosh से
यहाँ
इस तरफ़
इस
देहरी पर
धूसर भूरी भभूत
धीमी- धीमी लौ
सांस से उड़ते धुएं
और
बुदबुदाती हुई
असंख्य प्रार्थनाओं से परे
इस
दुनिया के
ढेरों इल्ज़ामों से
दूर कहीं
वहाँ
ऊपर
इस दुनिया का
ईश्वर कितना एकाकी