भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ई केन्हों मौसम ऐलोॅ छै / सियाराम प्रहरी
Kavita Kosh से
ई केन्हों मौसम ऐलोॅ छै
तनि केॅ खड़ोॅ बबूल छै
हवा बहै छै सनन सनन सन
दोलित कम्पित फूल छै
बिगड़ल बगदल बदमिजाज छै
तनिको सन लागै न लाज छै
आँखि में छै लोर आरू
काँटों भरलोॅ दुकूल छै।
छितरैलोॅ हर ओर उदासी
जिन्हेॅ देखो छै मायूसी
असन्तोस कुविचार विसमता
अनाचार के मूल छै।
कहिया लेॅ ई समय बदलतै
ई धरती के रूप निखरतै
जे करने सब के दुख भागै
हमरो वही कबूल छै
धरती के गोदी हरियैतै
धान गहुम लहरैतै गेतै
हौ दिन के स्वागत के लेली
खुरपी अरु कुदाल छै