भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उडीक! / इरशाद अज़ीज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बगत रो डाकियो
थारी ओळूं री पाती
जद देय‘र जावै
म्हारी उडीक
और सवाई हुय जावै
म्हैं जाणूं हूं
अबै थूं नीं आ सकै
उण दुनिया सूं
पण उडीक तो रैसी ई थारी।