भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उतरहि दिस से नैया एक आयल हे / अंगिका

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

उतरहि दिस से नैया एक आयल हेऽ
हिंगुर रंगल दुनू मांगि हेऽ
नैयो नै छियै बनिजरबो नै छियै हेऽ
बिनु रे खेबैया नैया आबै हेऽ
कहाँ गेलऽ किया भेलऽ रैया रनपाल हो
जल्दी से देहु नैया कात लगाय हो
किए तहूँ छिही गे बुढ़िया
दैतनी जे भूतनी गे
निसिभाग राति पाड़ै छै हाक गे
नहि हम छिये बेरीबरबा
दैतनी जे भूतनी रे
नहि हम भूतनी पिसाचनी रे
जाति के जे छिकियै बैरीबरबा
बराहमन कुल बेटिया रे
लोक कहै छै कोसिका कुमारि रे
जब तहूँ पुछले बेरीबरवा जातिया ठेकान रे
कहि दहि अपनो नाम ठेकान रे
जाति के छियै माय कोसिका
जाति के मलाह गे
माय-बाप रखलक माय कोसिका
कोहला दे देव नाम गे
पहिलुक पूजा कोहला देव,
तोहरे देबअ हो
चलऽ कोहला देव हमर साथ हो
माय हमर आन्हरि कोसिका
बाप काया कोढ़ि गे
हमे कौना जइबौ संग साथ गे
माय के आँखि देबौ,
बाप के काया देबौ बनाय हो
चलू कोहला वीर हमर संग साथ हो
गोड़ तोरा लागै छी माय कोसिका
दुह कर जोड़ि हे
विपत्ति बेरिया होहु ने सहाय हे ।