प्राचीर की छिद्र में एक नामगोत्रहीन
खिला है छोटा फूल अतिशय दीन
धिक् धिक् करता है उसे कानन का हर कोई
सूर्य उगकर उससे कहता, कहो कैसे हो भाई ?
मूल बांगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
प्राचीर की छिद्र में एक नामगोत्रहीन
खिला है छोटा फूल अतिशय दीन
धिक् धिक् करता है उसे कानन का हर कोई
सूर्य उगकर उससे कहता, कहो कैसे हो भाई ?
मूल बांगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा