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उद्वोधन / आनन्द झा न्यायाचार्य
Kavita Kosh से
जागू जागू मैथिल समाज।
सन्देश सत्य अछि निकट आज॥
तन्द्रालस दिन बिताओल अनेक,
तैँ लै अयलहुँ अछि सलिन्ल सेक
जा’ जागब नहि ता रहब ढारि,
धु्रव कान बीच ई सत्य-वारि।
हे युवक सिंह दीअऽ दहाड़
जे गूँजि उठै घर, वन, पहाड़।
मिथ्या पशु लै बनु बलि कृपाण,
पाबै जहिसँ निज देश त्राण।
देशक शासक करइछ अनीति,
समुचित तकरासँ नहि पिरीति।
झंझानिल सम बनि वेगवान,
झट तोडू खलशाखीक मान।
नवनव समुदय लै सहसपाद
बनि, नाशू अहँ तामस विषाद।
देशक उत्थानक बनु प्रतीक,
बनि सत्यनिष्ठ ओ विनिर्भीक।
फूकू नादक बल शंखनाद,
छपि जाय जतय नाना विवाद।
देशक गौरवपर राखि ध्यान,
करु उदय हेतु नवनव विधान।
निश्चय साहस नहि विफल हैत
माँ मैथिलीक गुन जगतगैत।