भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उनके हिस्से का वसंत / अरविन्द पासवान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिन्होंने
सरसों के फूल खिलाए
खुद पीला पड़कर

जिन्होंने
गेहूँ के दाने पुष्ट किए
स्वयं क्षीण होकर

जिन्होंने
कोयल हित बाग लगाए
अपना घोंसला जलाकर

जिन्होंने
धरती से आकाश तक मार्ग बनाए
अपनी देह बिछाकर
 
जिन्होंने
स्नेहिल रक्त से सींची
वसुंधरा की पोर-पोर

वे अभिशप्त हैं आज तक
गायब है उनके जीवन से
उनके हिस्से का वसंत