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उनके हिस्से का वसंत / अरविन्द पासवान
Kavita Kosh से
जिन्होंने
सरसों के फूल खिलाए
खुद पीला पड़कर
जिन्होंने
गेहूँ के दाने पुष्ट किए
स्वयं क्षीण होकर
जिन्होंने
कोयल हित बाग लगाए
अपना घोंसला जलाकर
जिन्होंने
धरती से आकाश तक मार्ग बनाए
अपनी देह बिछाकर
जिन्होंने
स्नेहिल रक्त से सींची
वसुंधरा की पोर-पोर
वे अभिशप्त हैं आज तक
गायब है उनके जीवन से
उनके हिस्से का वसंत