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उपेक्षित / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
कपड़ा
चाहे मारकिन हो।
चाहे मलवरी।
घिसला-चिसला पर
आकि जाड़े पुरान होला पर।
उपयोग लायक नञ मान के
टंगना-खूँटी पर
टाँग देवल जाहे।
नञ तो
बेकार के मोटरी में बाँध के
छोड़ देवल जाहइ
कोय कोना में
धूर-गरदा खाय खातिर
बिलकुल उपेक्षित।
अखनी
बूढ़-पुरनिया के भी
एहे हाल हे।