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उम्र की दास्तान लंबी है / बी. आर. विप्लवी
Kavita Kosh से
उम्र की दास्तान लम्बी है
चैन कम है थकान लम्बी है
हौसले देखिए परिंदों के
पर कटे हैं उड़ान लम्बे हैं
पैर फिसले ख़ताएँ याद आईं
कैसे ठहरें ढलान लम्बी है
ज़िंदगी की ज़रूरतें समझो
वक़्त कम है दुकान लम्बी है
झूठ-सच, जीत-हार की बातें
छोड़िए दास्तान लम्बी है