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उयार / बृजेन्द्र कुमार नेगी
Kavita Kosh से
घड़यलु धरा
दूध-फूल चढ़ा
धुपणा करीं
उच्यणा गढीं
फिर भी नि प्वाडू
जब फर्क
तब
जागरी व्वाडा व्वन बैठ
बेटा !
तुमल नि चड़ा 'किल्सार'<ref>बलि के लिए बकरा</ref>
इल्ले
देबता ल
नि सुणी पुकार
फिर
कनुखै हुणु छा
'उयार"।
शब्दार्थ
<references/>