Last modified on 26 नवम्बर 2010, at 08:32

उलझनें तो हैं सभी के साथ / जहीर कुरैशी

उलझनें तो हैं सभी के साथ
क्यों न हम जी लें‍ ख़ुशी के साथ

कुछ तो है रागात्मक रिश्ता
खारे सागर का नदी के साथ

रूप का जादू भी शामिल है
आपकी जादूगरी के साथ

सूर्य के संग धूप भी होगी
चाँद होगा चाँदनी के साथ

आपके भी पर निकल आए
रहते-रहते उस परी के साथ

गंध आती है सियासत की
मुझको उसकी दोस्ती के साथ

कितनी यादें छोड़ जाता है
साँप अपनी केंचुली के साथ