भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उल्लू और उलूकी / सुकुमार राय
Kavita Kosh से
उल्लू कहे उलूकी!
क्या ख़ूब तू चीख़ी!
सुनकर तेरी चाँय,चे,
हियरा मोरा नाचे।
मजा गला, झाँय झाँय,
मन मेरा हरषाय।
काठ चीरे-सा स्वर
डाली काँपे थरथर।
हर सुर में बारीक़ी,
हर तान में कीं-कीं।
सारे भय सारे दुख,
जियरा की धुकधुक,
गीत तेरे प्यारे
दूर करें सारे।
चन्द्र-मुख-बैन सुनि
झरे मेरे नैन पुनि।
सुकुमार राय की कविता : पेंचा आर पेंचानी (প্যাঁচা আর প্যাঁচানী) का अनुवाद
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित