उसने कहा तो था / गीता शर्मा बित्थारिया
उसने कहा उड़ो तुम
सारा आकाश तुम्हारा है
बताया नहीं मुझे
की डोर रहेगी
उसके हाथों
पतंग सी
उड़ती रही
बिना पंख के
पाखी सरीखी
उसने कहा गाओ तुम
अपनी मन पसंद धुन
बताया नहीं उसने
ढपली रहेगी
उसके हाथों में
साजदार सी
मैं बेताला
गाती रही
उसी ताल पर
उसने कहा स्वतंत्र हो तुम
घूम लो जहां तक जी चाहे
बताया नहीं उसने
घूंटे से बंधी गाय सी
और मैं रस्सी लंबी कर
घूमती रही गोल गोल
बिल्कुल स्वतन्त्र
वाडे के अंदर
उसने कहा जैसी हो
अच्छी लगती हो
बताया नहीं उसने
दर्पण रहेगा
उसके हाथों में
नव परिणीता सी
वक्त वेवक्त्त
सजती संवरती रही
उसकी मांग पर
उसने कहा नाच लो
सारा आंगन तुम्हारा
बताया नहीं मुझे
की डोर रहेगी
उसके हाथों
कठपुतली सी
नाचती रही
नर्तकी बन
उसके इशारों पर
तुम्हारा अस्तित्व
तुम्हारा प्रेम
सिर्फ मुझ तक सीमित
हां ये बताया था उसने
वो कहता गया
अंधे कुंए सी
ये बात
अंदरतम में भर
बस पलट के दोहराती रही
अन्दर से भी बस
गूंज आती रही
उसने कहा था