उसने ज़िन्दगी दी
तोहफ़े में मुझे ।
मैं क्या दे सकती हूँ
बदले में उसे ?
अपनी कविताएँ
कुछ और है भी तो नहीं मेरे पास ।
लेकिन क्या
सचमुच वे हैं मेरी ही ?
वैसे ही जैसे बचपन में
माँ के जन्मदिन पर देने के लिए
मैं चुना करती थी कोई कार्ड
और क़ीमत चुकाती थी पिता के पैसों से ।
क्या मेरी कवितायेँ सचमुच हैं मेरी ही ?
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल