उसे न विश्व की विभूतियाँ दिखीं,
उसे मनुष्य की न खूबियाँ दिखीं,
मिलीं हृदय-रहस्य की न झाँकियाँ,
सका न खेल
जो कि प्राण
का जुआ!
सजीव है गगन किरण-पुलक भरा,
सजीव गंध से बसी वसुंधरा,
पवन अभय लिए प्रणय कहानियाँ,
डरा-मरा
न स्नेह ने
जिसे छुआ!
गगन घृणित अगर न गीत गूंजता,
अवनि घृणित अगर न फूल फूलता,
हृदय घृणित अगर न स्वप्न झूलता,
जहाँ बहा
न रस वहीं
नरक हुआ!