उस गुलवदनी को पाकर भी
पा न सकोगे उसका प्यार,
जब तक क्रूर विरह का कंटक
सखे, न कर देगा उर पार!
कंघी को लो, तार तार जब तक
न हुआ था उसका गात,
फेर सकी वह नहीं उँगलियाँ
प्रेयसि अलकों पर सुकुमार!
उस गुलवदनी को पाकर भी
पा न सकोगे उसका प्यार,
जब तक क्रूर विरह का कंटक
सखे, न कर देगा उर पार!
कंघी को लो, तार तार जब तक
न हुआ था उसका गात,
फेर सकी वह नहीं उँगलियाँ
प्रेयसि अलकों पर सुकुमार!